बुधवार, 20 जनवरी 2010

अंधविश्वास और मीडिया की दायित्वहीनता

अंधविश्वास और मीडिया की दायित्वहीनता
सुभाष चन्द्र कुशवाहा
आज समाज की सोच, संवेदना और बौद्धिकता को सबसे अधिक मीडिया प्रभावित कर रहा है,खासकर दृश्य मीडिया । उपभोक्तावादी दौर में साहित्य, दर्शन और इतिहास की उपेक्षा, साथ ही साथ उपभोक्तावाद को फैलाने में जनमानस की बुद्धि पर नियन्त्रण का काम मीडिया के द्वारा ही सम्भव हुआ है । मीडिया अपने सामाजिक दायित्वों से मुक्त हो,टी0आर0पी0 के चंगुल में जा फंसा है । उसने जनता को जितना दिया है,उससे कहीं अधिक उसका नुकसान किया है । चूंकि वह धनबल से संचालित है इसलिए समाज उसके लिए मात्र उपभोक्ता है । वह ऐन-केन प्रकारेण मुनाफा कमाना चाहता है । सत्य-असत्य के विश्लेषण में समय बर्बाद करने का वक्त नहीं है यह । और न यह मीडिया के एजेण्डे में है ।
मीडिया द्वारा तर्क यह दिया जा रहा है कि दर्शक जो देखना चाहते हैं, वह दिखाया जा रहा है । सवाल तो यह भी है कि दर्शकों की राय,चाह जानने का तरीका क्या है ? दर्शकों की बेहतर राय, सोच और चाह के निर्माण का दायित्व क्या मीडिया का नहीं है ? दर्शकों का एक वर्ग अगर ब्लू फिल्में देखना पसन्द करे तो मीडिया क्या उसे भी परोसेगा ? दरअसल यह उत्तर निहायत गैर जिम्मेदारी भरा और उपभोक्तावादी नज़रिए से युक्त है । मीडिया ने आज दर्शकों को वहां लाकर खड़ा कर दिया है जहां उनकी बुद्धि का अपहरण करना बेहद आसान हो गया है । धर्म और आस्था का इस काम में बेहतर इस्तेमाल किया जा रहा है । ऐसे दौर में अंधविश्वासों को पुख्ता करने, समाज को वैज्ञानिक ताने-बाने के झांसे में उलझाकर अंधविश्वासी बनाने का कार्य मीडिया बखूबी कर रहा है ।
कितनी अजीब बात है कि सारे सत्य आंखों के सामने होने के बावजूद,ठगी-दर-ठगी के हम शिकार होते जा रहे हैं । अंधविश्वासों की वास्तविकता देखने के बावजूद पुन: अगले अंधविश्वास में उलझा दिए जा रहे हैं । देशभर में फैले सूखे पर मेंढ़क-मेंढकी विवाह, यज्ञ, हवन, नंगी औरतों के हल चलाने जैसे जो तमाम टोटके हुए, उनसे तो मानसून प्रभावित नहीं हुआ ? फिर सत्य उद्घाटित करने का दावा करने वाला मीडिया इन टोटकों के खिलाफ मुहिम क्यों नहीं छेड़ा ? वह तो अब भी तमाम चैनलों पर टोटकों की दुकानें खोले समाज की बुद्धि पर डाका डाल रहा है ।
समाज में चमत्कारिक पत्थरों को बेच कर जनमानस के कल्याण के दावे तो पहले से होते आए हैं । अब इन चमत्कारिक पत्थरों को बाकायदा टी0वी0 पर दिखाकर, दावे सम्बंधी झूठे विज्ञापनों और कुछ महानुभावों का अनुभव दिखा-बता कर दर्शकों को ऐसे पत्थरों को खरीदने के लिए उत्प्रेरित किया जा रहा है । मूंगा, लहसुनिया, गोमेद, माणिक, मोती, पुखराज, सुनहला, नीलम, पन्ना अदि रु0 2100 से लेकर रु0 2400 तक टी0वी0 के माध्यम से बेचे जा रहे हैं ।
रक्षा कवचों की तो बाढ़ आई हुई है । शुरुआत तो `रूद्राक्ष रक्षा कवच´ से हुई थी । अब नित्य नए रक्षा कवच प्रकाश में आ रहे हैं । दावे तो इतने बढ़े-चढ़े हैं कि लगता है मात्र तरह-तरह के रक्षा कवचों के सहारे ही जिन्दगी ऐशो आराम से गुजर जायेगी । एक चैनल `नज़र सुरक्षा कवच´ बेच रहा है और दावा कर रहा है कि दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने उसके रक्षा कवच को बुरी नज़रों से बचाने में प्रभावी माना है । दुनिया के ये कौन से वैज्ञानिक हैं और कहां रहते हैं,चैनल के पास इसका जवाब नहीं है । तीस दिन में लाभ प्राप्त न होने पर पैसा वापस करने का दावा किया जा रहा है । ये रक्षा कवच, व्यवसाय में लाभ दिलाते हैं, नए रिश्ते बनाते हैं, प्रेमिकाएं उपलब्ध कराते हैं, वेतन बढ़ाते हैं और न जाने क्या-क्या लाभ दिलाते हैं । `नज़र सुरक्षा कवच´, `शिव शक्ति सुरक्षा कवच´, `शनि सुरक्षा कवच´,`शनि वाहन रक्षा कवच´, `हनुमान रक्षा कवच´, `दुर्गा रक्षा कवच´ और न जाने कितने प्रकार के रक्षा कवच रु0 2500 के आसपास बेचे जा रहे हैं । जाहिर है दो जून की रोटी का जुगाड़ न करने वालों के लिए ऐसे रक्षा कवच नहीं हैं ।
रक्षा कवचों पर आस्था न रखने वालों के सम्बंध में बर्बादी की खौफनाक बातें बताई जाती हैं । बताया जाता है कैसे अविश्वासी का जीवन नरक तुल्य हो गया । दर्शकों को बताया जाता है कि इन रक्षा कवचों के सहारे हर प्रकार का लाभ कमाया जा सकता है । फिर तो इस देश की गरीबी, दुर्दशा, लाचारी, भुखमरी देखकर हमें आश्चर्य चकित होना चाहिए । मीडिया में छाये रहने वाले इन रक्षा कवचों को आम जनता में बांट कर करोड़ों रुपयों की लागत से चलाई जाने वाली तमाम विकास योजनाओं, अस्पतालों, वैज्ञानिक संस्थानों से बचा जा सकता है । देश को इन तान्त्रिकों, बाबाओं और ठगों के हवाले कर हमें निश्चिन्त हो जाना चाहिए । अगर नहीं तो फिर यह पूछा जाना चाहिए कि मीडिया के सहारे इन ठगों को जनता को ठगने की इजाजत कैसे मिली हुई है? ऐसे अंधविश्वासी समाज का निर्माण कर क्या मुल्क तरक्की कर सकता है ? क्या अभी सदियों तक हम ऐसे ही ठगों के रहमों -करम पर ज़िन्दा रहेंगे ?
विडंबना तो यह है कि हर रक्षा कवच अपने को श्रेष्ठ बता कर दूसरे की असलियत की पोल स्वयं खोल रहा है । दूसरों को बेकार और अपने को श्रेष्ठ बता रहा है । इसके बावजूद मीडिया के विज्ञापनों, विज्ञापनों में दिखने वाले चमत्कारिक बाबाओं और देवी-देवताओं के नामों का इस्तेमाल कर ये ठग जनता को भुलावे में लेने में सफल हो रहे हैं । वास्तुशास्त्र वाले जहां वास्तुदोषों को दूर करने के लिए रसोई घर,बाथरूम आदि की तोड़फोड़ करा कर वास्तु दोषों को दूर करने के तरीके बता रहे हैं तो वहीं रक्षा कवच बेचने वाले दावा करते हैं कि शिव शक्ति सुरक्षा कवच घर पर लगाने से स्वत: सारे वास्तुदोष दूर हो जाते हैं । यानि की तोड़फोड़ कराने की जरूरत ही नहीं । अब यह दर्शकों की बुद्धि पर निर्भर है कि वे वास्तुशास्त्र के बल पर जियें या रक्षा कवचों के सहारे । कहा जा रहा है कि शनि नाराज हो जाएं तो राजा को भिखारी और भिखारी को राजा बना देते हैं । क्या शनि इतनी गैर जिम्मेदारी का व्यवहार करते हैं ? राजा को रंक और रंक को राजा बनाने का कोई तार्किक कारण तो होना ही चाहिए ? दरअसल इस उपभोक्तावादी दुनिया में यह सब ठगों की चाल है जो मीडिया के सहारे अपनी दुकानें सजाए, लाभ कमा रहे हैं। । आम लोगों का भविष्य संवरे या न संवरे, इन ठगों का भविष्य तो संवर ही रहा है । मीडिया को भी लाभ कमाना है चाहे दर्शक ठगे जाएं या अंधविश्वासों के चंगुल में फंस कर रह जाएं, उसकी कोई जवाबदेही नहीं है । ऐसे समय और दौर में मीडिया को कोई हक भी नहीं बनता जो अपनी विश्वसनीयता का दावा करे,किसी ठगी का पर्दाफाश करे और दूसरों की विश्वसनीयता या ठगी पर सवाल उठाए । जब वह स्वयं समाज को ठगने का वाहक बना हुआ है तो फिर समाज की बौद्धिकता के निर्माण के लिए हमें दूसरे विकल्पों का सहारा लेना ही पड़ेगा । चूंकि ऐसे विकल्प सीमित हैं, इसलिए यह सम्भव है कि आने वाले दिनों में विज्ञान की तमाम प्रगति के बावजूद वृहत् समाज अंधविश्वासी समाज में तब्दील होता जायेगा । इस अंधी सुरंग से निकलने का रास्ता जनआन्दोलनों से ही सम्भव है । अब देखना है कि उपभोक्तावाद, जिसने तमाम जनआन्दोलनों की हवा निकाल दी है, उसके खिलाफ कब और कैसे कोई जनचेतना विकसित होती है ।

सुभाष चन्द्र कुशवाहा
बी 4/140 विशालखण्ड
गोमतीनगर,लखनऊ 226010