Subhash Chandra Kushwaha's literary works including stories and articles in Hindi which is focussed around social awareness and other issues regarding India.
शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011
यूं चले गये भाई अनिल सिन्हा
यूं चले गये भाई अनिल सिन्हा? 23 जनवरी के ई-मेल में आप ने वादा किया था कि 25 फरवरी को लखनऊ आ जाऊंगा । आना तो दूर, सदा-सदा के लिए शरीरिक दूरी बना ली । आप थे तो पत्रकारपुरम की ओर अनायास मुड़ जाता था । जाता तो भाभी जी बहुत कुछ जबरदस्ती खिलाती और आप बहुत प्यार से घर-परिवार, देश-समाज, साहित्य-संस्कृति पर बोलते-बतियाते । क्या बताऊं, लखनऊ बसने के बाद, आप का होना, अभिभावक का होना था । इतनी जल्दी टुअर कर चल दिए । जाइए, मैं नहीं बोलता आप से ? यह भी कोई बात हुई । जब मैं बीमार था पिछले दिनों, कितनी बार देखने आये थे आप ? साथ में भाभी जी भी थीं । अब ? कौन देखेगा मुझे । अब तो मुझे पक्का विश्वास है कि आप लोकरंग में भी नहीं आयेंगे । अब तक तो आप आते ही रहे, बेहतर करने के बारे में सिखाते रहे । अब ? क्या करूं फोल्डर से नाम निकाल दूं ? लेकिन दिल में जो कसक है उसका क्या ? दिल के फोल्डर जो आप की स्मृति है उसका क्या ? पटना आपकी कर्मभूमि थी, वहां जाकर आपने चीरनिद्रा ग्रहण कर ली । अब आप के चाहने वाले, आपके संगी-साथियों पर जो बीत रही है उसके बारे कुछ तो विचार किये होते । विगत तीन दिनों से मन खटक रहा था पर एक विश्वास भी कि आप आयेंगे जरूर । कुछ दिन पूर्व ही आप ने 27 फरवरी के कार्यक्रम के लिए मुझसे मैंनेजर पाण्डेय का रेलवे आरक्षण कराने को कहा था जिसे मैंने तत्काल करा कर भेज दिया था । अब आप के कारण वह सब खत्म । संचालक तो आप ही थे ? ऐसा धोखा ? मुझे तो अब भी विश्वास नहीं होता कि आप ऐसा करेंगे ? जाइये मैं आप से नहीं बोलता ... । ----मेरे भा...ई ।
सुभाष चन्द्र कुशवाहा
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